4 जुलाई
1902 को दुनिया से विदा
लेने वाले स्वामी
विवेकानंद ने जाते
जाते एक अनोखा
काम किया. उन्होंने
अपने जीवन के
अंतिम दिन अपने
शिष्यों को बुलाकर
अपने हाथों से
उनके पैर धोये.
और हैरानी कि
बात है जिसस
क्राइस्ट ने भी
अंतिम दिन अपने
शिष्यों के पैर
धोए थे. शायद
उन्हें मृत्यु का पूर्वाभास
था.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें